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सिविल सेवा (संघ व राज्य लोक सेवा आयोग), बैंक पी. ओ., एस. एस. सी., रेलवे, एम. बी. ए., एन. ए./सी डी. एस., मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि प्रतियोगिता परीक्षा हेतु कोचिंग इंस्टीट्यूट का चयन।
उस पर एक नजर
कम्प्यूटर संस्थानों का चयन
यदि आप स्वाध्याय पर निर्भर हैं
 

प्रतियोगिता परीक्षाओं का स्तर और उनकी प्रकृति चूंकि सामान्य बोर्ड परीक्षाओं से अलग होती है, इसीलिए उन्हें अपने दम पर पास कर लेना आसान नहीं होता। यह आसान हो सकता है जब उन परीक्षाओं के लिए आपको बेहतर गाइडेंस यानी कोचिंग मिल रही हो। इस संदर्भ में हमारा पहला सवाल यह हो सकता है कि क्या प्रवेश / प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में कोचिंग लेना आवश्यक है अथवा नहीं ? अगर जवाब ‘है’ में हो तो स्वतः दूसरा सवाल मन में उठता है कि आखिर कोचिंग संस्थान कैसा हो, तथा उसका चुनाव कैसे व किस मापदंड पर करें ?

प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु आज ज्यादातर कोचिंग इंस्टीट्यूट गुणवत्ता व सफलता की कसौटी पर बेमानी साबित हुए हैं। इन कोचिंग संस्थानों द्वारा सफल प्रत्याशियों की जो लम्बी सूची प्रचारित की जाती है अधिकांशतः झूठी और भ्रम में डालने वाली होती है। दरअसल इन ‘तथाकथित’ कोचिंग इंस्टीट्यूट की बुनियाद ही वैसे लोग रखते हैं जो कभी खुद प्रतियोगिता परीक्षा के प्रत्याशी रहे होते हैं और असफलता के परिणामस्वरूप तथा बेरोजगारी के आलम में रोजगार पाने हेतु स्वयं कोचिंग इंस्टीट्यूट खोल लेते हैं। चूंकि पैसा कमाना इनका मुख्य लक्ष्य होता है तो स्वाभाविक है इनका ध्यान गुणवत्ता की तरफ कम रहेगा। कुछ कोचिंग संस्थान चलाने वाले तो प्रत्याशियों को आकर्षित करने के लिए, कुछ प्रसिद्ध विद्वानों के नाम अपने संस्थान से जोड़ लेते हैं और ऐसे ‘एक्सपर्ट विद्वान’ कुछ क्लास ही ले पाते हैं और शेष क्लास वैसे लोग संचालित करते हैं जिनकी पृष्ठभूमि अफवाहों से बनायी जाती है।

प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने का सपना लिए उर्जा से ओत-प्रोत, नादान नये छात्र विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के वैसे छात्र जो दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, लखनउ, जयपुर, रांची, इन्दौर आदि शहरों में सिर्फ कोचिंग लेने आते हैं, वे इस तरह के फैलाये हुए अफवाहों के जाल में शीघ्र फंस जाते हैं और हजारों रुपये इन कोचिंग संस्थानरूपी दुकान को दे देते हैं और इस तरह शुरू होता है प्रत्याशियों के शोषण का सिलसिला।

ये कोचिंग इंस्टीट्यूट ‘अध्ययन सामग्री’ या ‘स्टडी मटेरियल’ के नाम पर कुछ अच्छी किताबों के महत्वपूर्ण अंश चुराकर इकट्ठा कर लेते हैं या किसी सफल प्रत्याशी के व्यक्तिगत नोट्स खरीद कर उसे ‘स्टडी मटेरियल’ के नाम पर छात्रों को दे देते हैं। बेचारा छात्र, जब विस्तार से स्वयं गहन अध्ययन करता है तो उसे खुद ‘स्टडी मटेरियल’ में विभिन्न पुस्तकों के चुराये गये अंशों का ज्ञान हो पाता है, लेकिन तब तक वह कोचिंग वालों के हाथों लुट चुका होता है।
कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट तो पूरा पाठ्यक्रम भी नहीं पढ़ा पाते हैं, तो कुछ बैच शीघ्रता से खत्म करने के लिए एक दिन में 12 से 14 घंटे तक क्लास आयोजित कर छात्रों पर अनावश्यक बोझ डाल देते हैं।

शोषण का यह सिलसिला सिर्फ छात्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसे पढ़ाने वाले शिक्षक भी तथाकथित कोचिंग डाइरेक्टरों द्वारा अक्सर मानसिक व आर्थिक शोषण के शिकार होते रहते हैं। कई बार शिक्षकों के बीच प्रतिद्वन्द्विता व संघर्ष करा कर उनका आर्थिक शोषण किया जाता है।

अतरू अविश्वास, ठगी से युक्त और गुणवत्ता से कोसों दूर इन, कोचिंग संस्थानों से छात्रों को सदैव सतर्क रहना चाहिए। कोचिंग संस्थान के चुनाव से पूर्व प्रत्याशी को कुछ बातों पर विचार कर लेना चाहिए।

उस पर एक नजर

  • कोचिंग चुनते समय छात्र अपने दोस्तों, परिचितों के कहने पर या फिर पहले से प्रतिष्ठित कोचिंग आदि को यूं ही चुन लेते हैं। लेकिन गुणवत्ता और छात्रों की संख्या भी ऐसे पैमाने हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए।

  • एक कोचिंग संस्थान में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता का अर्थ है कि जो वायदा वह कोचिंग करती है, उसे कितना निभा रही है। क्योंकि यही वह फैक्टर है, जो कि आपके लिए भी लाभदायी साबित होगा। इन सबको समझने के लिए कोचिंग संस्थान में पढ़ाया जाने वाला मैटीरियल क्या है, पढ़ाने का तरीका कितना प्रभावी है, फैकल्टी कैसी है आदि महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानना चाहिए।

  • किसी भी कोचिंग को जॉइन करने से पहले वहां का रिजल्ट देखना चाहिए। वहां के एक्स-स्टूडेंट्स से बात कर लेना बेहतर रहता है। इससे कोचिंग की सही स्थिति के बारे में पता चलता है। किसी भी कोचिंग के विज्ञापन पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि कोचिंग एक प्रोफेशन बन चुका है।

  • संस्थान में फैकल्टी प्रतिष्ठित और अनुभवी है या नहीं,, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए। कुछ संस्थान ऐसे होते हैं। जिनमें गेस्ट फैकल्टी के तौर पर अच्छे इंस्टीट्यूट्स के लेक्चरर्स बुलाए जाते हैं। इससे बहुत लाभ मिलता है। लेकिन वह भी संस्थान अच्छे रिजल्ट देते हैं और भरोसे लायक होते हैं, जहां फैकल्टी में रिटायर्ड लेक्चरर्स और प्रोफेसर्स होते हैं। आईआईटी या मेडिकल के केस में अगर ्रकमशरू आईआईटी की रिटायर्ड फैकल्टी या कोई साइंस टीचर्स आदि शामिल हों तो तैयारी निश्चित ही बहुत शानदार होती है।

  • कोचिंग में विषयों की छद्म परीक्षा ली जाती है या नहीं तथा कितनी बार ली जाती है ।

  • समूह-चर्चा या ग्रुप डिस्कक्शन होता है या नहीं।

  • प्रश्नोंत्तर लिखने का अभ्यास कराया जाता है या नहीं।

  • कोचिंग संस्थान में पुस्तकालय की सुविधा है या नहीं तथा पुस्तकों की उपलब्धता है या नहीं।

  • कोचिंग संस्थान में कभी-कभी सेमिनार या व्यक्तित्व निर्माण और आत्म-विश्वास में वृद्धि हेतु विद्वानों या सफल प्रत्याशियों से मिलने-जुलने की कार्यशाला आयोजित होती है या नहीं।

  • आजकल किसी भी कोचिंग संस्थान की फीास हजारों के आंकड़े में होती है। हर एक प्रतिभाशाली छात्र के लिए जरूरी नहीं कि वह फीस को एक मुश्त दे सके। जब छात्र कोचिंग चुनें तो उसे यह भी देख लेना चाहिए कि उसे कितनी तरह से वित्तीय सहूलियतें मिल रही हैं। फीस माफी की उम्मीद तो करना निराधार ही होगा। लेकिन कुछ एक संस्थान ऐसे जरूर हैं, जो कि इसका भी ध्यान रखते हैं। वैसे ज्यादातर संस्थानों में पूरी फीस एक मुश्त न रखकर तीन हिस्सों में बांटकर ली जाती है। इस तरह एक बार में कम बोझ आता है।

  • कोचिंग संस्थानों में छात्रों को बैच में बांटकर पढ़ाया जाता है। एक-एक बैच में 30 से लेकर 120 तक छात्र शामिल हो सकते हैं। हर एक छात्र इस उम्मीद से जाता है कि उसे सफल होना है। एक बैच में बहुत ज्यादा बच्चों को पढ़ाने का मतलब है कि हर बच्चे पर टीचर का ध्यान नहीं जा पाएगा। ऐसे में हर एक बच्चे की परफॉरमेंस आंकने के लिए कोचिंग में क्या अन्य तरीके अपनाए जा रहे हैं, बैच में छात्रों की संख्या के साथ इस पर भी ध्यान देना चहिए।

  • किसी भी काम को करने से पहले यह जांच लेना कि आपमें उस काम के लायक बेसिक क्षमताएं हैं कि नहीं। अच्छा कोचिंग संस्थान इस बात का ध्यान रखता हैं। स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए विद्यार्थी की क्षमताओं का पता किया जाता है। स्तर के अनुसार ही उसे बैच दिया जाता है, ताकि तैयारी भी उसी हिसाब से शुरू कर सकें। कुछ संस्थान तो काफी स्ट्रिक्ट होते हैं। यदि छात्र की क्षमता उनके अनुसार नहीं है तो वह उसे कोचिंग में प्रवेश नहीं देते।

  • एक अच्छी कोचिंग के लिए यह भी जरूरी है कि वह शहर से बहुत दूर न हो। अगर दूर हो भी, तो आस-पास अन्य सुविधाएं भी हों। जिससे आने-जाने में बहुत ज्यादा समय न लगे।

  • उस सेंटर की फीस के बारे में मालूम करें। यह कतई जरूरी नहीं है कि महंगा सेंटर अच्छा ही होगा। कम बजट वाले कोचिंग सेंटर भी स्टूडेंट्स को उपयुक्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवा सकते हैं।

  • यदि आप कोचिंग सेंटर का परीक्षण सही तरीके से न कर सकें, तो किसी उचित करेस्पोंडेंस पैकेज का चुनाव करें।

  • ज्ञान का क्षेत्र अनंत है, सीमित समय में चुनाव की कसौटी क्या हो, यहीं विषय-विशेषज्ञ की भूमिका अत्यन्त महत्पूर्ण हो जाती है। यदि विषय में उसका काफी विस्तृत अध्ययन है और अपने विषय के नित्य नवीन शोधों से सुपरिचित हैं, तो वह अपने विद्यार्थियों को कम समय में ही सुयोग्य एवं सजग अध्येता सिद्ध कर देता है।

  • सुयोग्य विशेषज्ञ कम समय में आपको विषय में अधिकारिक दक्षता दे सकता है, लेक्चर्स के साथ-साथ उसका डिक्टेशन भी लें, इससे विषय पर आपकी पकड़ मजबूत होती जाएगी।

  • पिछले वर्षों में पूछे गये सवालों पर विस्तृत चर्चा करें, अध्यापक समक्ष ग्रुप डिस्कशन करें। उत्तर लिखकर अध्यापक से मूल्यांकित कराएं।

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