ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित तथा
राग दरबारी जैसा कालजयी व्यंग्य उपन्यास लिखने वाले 86 वर्ष के
मशहूर व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल का शुक्रवार 28, अक्टूबर, 2011 को
निधन हो गया।
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार 31 दिसंबर 1925 में लखनऊ जनपद के
अतरौली गांव में जन्मे शुक्ल ने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय
से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर 1949 में राज्य सिविल सेवा में अपनी
नौकरी शुरू की और 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश ग्रहण
किया था। स्व. हरिशंकर परसाई के बाद वह हिन्दी के बडे़ व्यंग्यकार
थे।
तीस से अधिक पुस्तकों के लेखक श्रीलाल शुक्ल का पहला उपन्यास 1957
में 'सूनी घाटी का सूरज' छपा था और उनका पहला व्यंग्य संग्रह 'अंगद
का पांव' 1958 में छपा था। उन्हें 1969 में राग दरबारी के लिए
साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। महज 34 वर्ष की उम्र में ही इस
उपन्यास ने उन्हें हिन्दी साहित्य में अमर बना दिया। वह अकादमी का
पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के सबसे कम उम्र के लेखक हैं। राग दरबारी
का अनुवाद अंग्रेजी के अलगावा 15 भारतीय भाषाओं में हो चुका है।
उन्हें 'विश्रामपुर का संत' उपन्यास के लिए व्यास सम्मान से भी
नवाजा गया। उन्हें लोहिया सम्मान, यश भारती सम्मान, मैथिली शरण
गुप्त पुरस्कार और शरद जोशी सम्मान भी मिला था। वह भारतेंदु नाट
अकादमी, लखनऊ के निदेशक तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की मानद
फैलोशिप से भी सम्मानित थे।
उनकी प्रसिद्ध कृतियों में 'जहालत के पचास साल', 'खबरों की जुगाली',
'अगली शताब्दी का सहर', 'यह घर मेरा नहीं', 'उमराव नगर में कुछ दिन'
भी शामिल है। एक लेखक के रुप में उन्होंने ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड,
सूरीनाम, चीन, युगोस्लाविया जैसे देशों की भी यात्रा कर भारत का
प्रतिनिधित्व किया था।
शुक्ल ने आजादी के बाद भारतीय समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पाखंड,
अंतर्विरोध और विसंगतियों पर गहरा प्रहार किया। वह समाज के वंचितों
और हाशिए के लोगों को न्याय दिलाने के पक्षघर थे। |